Glittering Updates ~ The Indian Jewellery Journal
Taarkasi | by Swapnil Shukla
कटक की उत्कृ्ष्ट विरासत :: ' तारकसी '
तारकसी की कला जो कि 500 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है, कला, सौंदर्य व उपयोगिता का महान मिश्रण है. यह कला आज के आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है जो अपनी पारंपरिक जड़ों के साथ जुड़ी हुई है. पशु- पक्षी, फूल- पत्ती आदि डिज़ाइन्स से लैस मिनचर हैण्ड्बैग्स , आभूषण , स्मारिका ( सूवनिअर ) व कोणार्क चक्र व ताज महल का रेप्लिका ( प्रतिकृ्ति ) आदि तारकसी द्वारा तैयार किए जाते हैं जो बेहद मनमोहक व आकर्षक लगते हैं. तारकसी द्वारा तैयार महाभारत को आधार बनाकर अर्जुन व भगवान् कृ्ष्ण का रथ अधिक प्रचलित है.
तारकसी की डिज़ाइन्स को चाँदी के तारों व पन्नी द्वारा तैयार किया जाता है. चाँदी के तारों व पन्नी को कुशल कारीगर मनमाफ़िक डिज़ाइन्स के अनुरुप ढालते हैं. जिसके फलस्वरुप हमें बेहतरीन व अनंत सौंदर्य से लैस आभूषणों व वस्तुओं की प्राप्ति होती हैं. ग्रैन्यूलेशन, स्नो ग्लेज़िंग व कास्टिंग जैसी तकनीकों का उपयोग कर तारकसी की कला को नया आयाम दिया जाता है. प्लैटिनम पॉलिश द्वारा तारकसी से लैस आभूषण व वस्तु की चमक को बढ़ाया जाता है .तारकसी की कला को एक अलग रुप प्रदान करने के लिए कारीगर कभी- कभी चाँदी- पीतल को मिश्रित करके एक भेदकारी व अनमोल वस्तु को तैयार करते हैं.
सिल्वर फिलिग्री अर्थात तारकसी डिज़ाइन्स से लैस आभूषणों की सुंदरता व दमक बेमिसाल होती है. हाथों के आभूषण , हार, बिछिया और खासकर पायल , लोगों के बीच अधिक प्रचलन में हैं. तारकसी द्वारा तैयार पायल, जिसमें सेमी प्रीशियस स्टोन्स जड़े हों, की माँग सबसे अधिक है. सिंदूर दान, पेंडेंट , कानों की बालियाँ, हेयर पिन्स, ब्रूचेस भी अत्यधिक प्रचलित हैं.
ओड़िसी नृ्त्य के लिए भी नृ्त्यांगनाएं व नृ्तक अमूमन तारकसी कला से लैस आभूषण को ही अधिक तवज्जो देते हैं. प्राचीन समय में ओड़िया संस्कृ्ति के अनुसार विवाह में तारकसी द्वारा तैयार सिंदूर दान का उपयोग अनिवार्य था . आज के आधुनिक समय में ओड़िया विवाह में तारकसी द्वारा तैयार वेस्ट बैण्ड ( कमर बंध ) व पायल और बिछिया का उपयोग अनिवार्य है.
इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष कटक में दुर्गा पूजा में तारकसी कला का विभिन्न पाण्डालों में प्रयोग किया जाता है. माँ दुर्गा के आभूषण भी तारकसी द्वारा ही तैयार किए जाते हैं जो बेहद आकर्षक व भव्य होते हैं.
तारकसी की कला कटक ही नहीं अपितु भारत देश की सर्वाधिक अनमोल विरासतों में से एक है . तारकसी का कार्य कुशल कारीगरों के अभाव में संभव नहीं . तारकसी की कला कुशल , योग्य कारीगरों की मेहनत, लगन व कड़े परिश्रम का साक्षात उदाहरण है जो सौंदर्य, उपयोगिता व लावण्य का मिश्रण है.
अत: तारकसी की कला में पारंगत कारीगरों की उन्नति के लिए सरकार के साथ- साथ आम लोगों को भी प्रयास करने चाहिये ताकि दिनों- दिन सुविधाओं के अभाव में विलुप्त होती इस कला को प्रोत्साहन मिले और इस बेमिसाल व अनमोल कला को देश - विदेश में ख्याति प्राप्त हो सके.
Bidri Work | by Swapnil Shukla
काले व सफेद का सौंदर्यवान संगम :: बिदरी वर्क
काले व सफेद का संगम हमेशा से ही लोगों को लुभान्वित करता है. रंगों की महत्ता को यूँ तो दरकिनार नहीं किया जा सकता . फिर भी काले व सफेद के मिश्रण की भी अपनी ही अदा है और इस मिश्रण का समावेश यदि आपके आभूषणों या सजावटी वस्तुओं में किया जाए , तो काले व सफेद का यह अतुल्नीय संगम निश्वित तौर पर अत्यंत मनमोहक व आकर्षक सिद्ध होगा. काले व सफेद का यही सौंदर्यवान संगम देखने को मिलता है बिदरी वर्क में .
कर्नाटक के बिदर की खूबसूरत व अदभुत दस्तकारी बिदरी वर्क 14वीं शताब्दी के दौरान विकसित हुई. बिदरी वर्क से तैयार वस्तुओं का क्रेज़ आज भी इसके जानकार लोगों के लिए आकर्षण का विषय है. बिदरी वर्क से लैस वस्तुएं , संपन्नता का प्रतीक मानी जाती हैं.
बिदरी शिल्प की उत्पत्ति को 14-15 वीं शताब्दी के दौरान बिदर में शासन करने वाले बहमनी सुलतानों की देन माना जाता है. इसकी उत्पत्ति पुरातन परसिया ( Persia ) में हुई. बाद मे इसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के अनुसरणकर्ताओं द्वारा भारत लाया गया .धीरे-धीरे कुशल कारीगरों द्वारा इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सफलतापूर्वक व पूर्ण दक्षता के साथ पहुँचाया गया जिसके फलस्वरुप इस अनमोल शिल्प कला का अस्तित्व आज भी जीवित है .
बिदरी वर्क से लैस आभूषण , बर्तन, सजावटी वस्तुएं आदि कास्टिंग ( Casting ) प्रक्रिया द्वारा ताँबे ( Copper ) और जस्ते ( Alloy ) के मिश्रण से तैयार की जाती हैं . जस्ते के मिश्रण द्वारा वस्तु को काला रंग प्रदान किया जाता है.
कास्टिंग प्रक्रिया के बाद कारीगर छेनी के माध्यम से वस्तु पर डिज़ाइन उकेरते हैं. फिर शुद्ध चाँदी के तारों व पटटियों को खाँचों में जड़ा जाता है. इसके बाद एक विशेष प्रकार की मिट्टी द्वारा लेई बनाकर तैयार वस्तु की उस सतह पर लगाया जाता है जिसे काले रंग में ढालना हो. तेल के उपयोग द्वारा तैयार वस्तु को फिनिशिंग टच दिया जाता है.
बिदरी वर्क की डिज़ाइन्स के लिए साधारणतय: अशर्फी की बूटी ( Asharfi-ki-booti ) , बेलें (vine creepers), ज्यामितीय अभिकल्प ( geometric designs ), मानव आकृ्ति, ख़स ख़स के पौधे व फूल ( poppy plants with flowers ) आदि के मोटिफ्स का प्रयोग किया जाता है . इसके अतिरिक्त परसियन गुलाब ( Persian roses ) और अरबी में लिखे गए कुरान के उद्धरण के अभिकल्पों से लैस बिदरी वर्क की वस्तुओं की भी काफी माँग है.
प्रारंभिक समय में बिदरी शिल्प कला का प्रयोग हुक्का, पानदान , पुष्प पात्र ( गुलदान ) बनाने में होता था. पर वर्तमान समय में आभूषण , तश्तरी ( Tray ), निशानी ( keepsakes ), कटोरा ( Bowl ), अलंकृ्त संदूक ( ornament boxes ) , सजावटी वस्तुएं आदि बनाने में बिदरी वर्क का प्रयोग किया जाता है. औरंगाबाद में कारीगर अजन्ता की गुफाओं में बनी आकृ्तियों की डिज़ाइन्स को बिदरी शिल्प से लैस वस्तुओं में प्रयोग करते हैं जो विदेशी पर्यटकों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं.
आधुनिक समय में विश्व प्रसिद्ध बिदरी वर्क पुनरुद्धार के मार्ग पर प्रशस्त है. भिन्न- भिन्न प्रकार के अभिकल्पों द्वारा तैयार बिदरी वर्क की वस्तुएं विभिन्न होम डेकोर व लाइफस्टाइल स्टोर्स की शान में इज़ाफा कर रही हैं. लोगों के बीच बिदरी वर्क की वस्तुओं व आभूषणों की खासी माँग , इस अनमोल विरासत के सुखद भविष्य का परिचायक है. कर्नाटक राज्य के विभिन्न शिल्प विकास संघों द्वारा बिदरी वर्क के कारीगरों के प्रोत्साहन व उन्नति के लिए अनेकों सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं.
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के अलावा बिदरी शिल्प की जड़ें बिहार, लखनऊ व मुर्शिदाबाद में भी फैली हुई हैं. अत: आप भी बिदरी वर्क द्वारा बनाए गए आभूषणों व अन्य नुमाइशी वस्तुओं को अपनी ज़िंदगी में स्थान दीजिये और काले व सफेद के संगम से बनी बिदरी शिल्प कला के सौंदर्य का लुत्फ उठाइये.
Jewels of Maharashtra | by Swapnil Shukla
ज्वेलस ऑफ महाराष्ट्र
हमारे देश में हमें विभिन्न परंपराएं , संस्कृति, धर्म, मान्यताएं आदि देखने को मिलती हैं. ये विभिन्नता ही हमारे देश को अन्य देशों से अलग बनाती है. और विभिन्नता में एकता का मंत्र हमारे देश के गौरव को बढ़ाता है. भारतीय शिल्प व विभिन्न कलाओं में भी इसका असर देखने को मिलता है . देश के विभिन्न प्रदेशों की अपनी अपनी संस्कृति , पहनावा आदि है जो उन्हें दूसरे प्रदेशों से पृथक करता है और उनकी संस्कृति को दर्शाता है . संस्कृति की यह भिन्नता कहीं न कहीं उनकी पहचान भी बन जाती है . फ़ैशन जगत में भी इस विभिन्नता का जमकर उपयोग किया जाता है . किसी प्रदेश विशेष के पहनावे, आभूषणों के इतिहास को आज के परिवेश के साथ जोड़्कर फ़ैशन जगत में परिधानों व आभूषणों को नया आयाम दिया जाता है. यह सुखद व रचनात्मक क्रियाएं हमारे जीवनशैली व सौंदर्य में इज़ाफा करती हैं. इसी संदर्भ में आज हम नज़र डालेंगे महाराष्ट्र प्रदेश के आभूषणों की विशेषताओं पर.
महाराष्ट्र के आभूषणों का अपना एक पृथक अस्तित्व व पहचान है. देखने में अत्यधिक सौंदर्यपरक ये आभूषण किसी भी स्त्री के लालित्य में चार चाँद लगाने में पूर्ण रुप से सक्षम हैं. मराठा पेशवा शासनकाल से प्रेरित महाराष्ट्र के आभूषणों की अपनी ही एक अलग अदा है. इन आभूषणों का निर्माण अधिकतर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में होता है. इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक आभूषण के अभिकल्प के पीछे एक सोच है ,एक उद्देश्य है. बात चाहे कोल्हापुरी साज की हो या बेलपान वज्रटिक हार की, इनमें सम्मिलित प्रत्येक मोटिफ के इस्तेमाल की अपनी एक वजह होती है . बात चाहे स्वयं को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाने की हो या देवी देवताओं पर अटूट विश्वास की हो,महाराष्ट्र के आभूषणों को तैयार करने में इन बातों को ध्यान में रखा जाता है. प्रमुख रुप से जो महाराष्ट्रियन आभूषण महिलाओं के आकर्षण का केंद्र रहे हैं वे निम्नलिखित हैं
करवरी नथ, को मराठी महिलाओं का सबसे प्रियतम आभूषण माना जाता है.बसरा मोती से जड़ी , इन नथों के डिज़ाइन में माणिक और पन्ना जैसे बेशकीमती रत्नों को जोड़्कर ,इनकी खूबसूरती में इज़ाफा किया जाता है.
गुलसरी , पारंपरिक महाराष्ट्रियन चोकर को कहते हैं जिसे शुद्ध सोने के तार से बनाया जाता है, प्रमुख आभूषणों की गिनती में आता है.
वज्रटिक, जवारी अनाज के आकार के बीड्स के संयोजन से बनता है और स्त्रियों के लालित्य में चार चाँद लगाता है.
बेलपान वज्रटिक हार , बिल्व पत्र की पवित्र पत्ती के आकार को ध्यान में रख कर डिज़ाइन किया जाता है . इसकी खूबसूरत डिज़ाइन के चलते ये मराठी महिलाओं के आकर्षण का केंद्र है .
मोहन माला , एक लंबा हार है जो सोने की मोतियों की कई लेयर्स व चेन स्ट्रिंग्स से बनता है और ये सूर्य के आकार के पेंडेंट से सुसज्जित होता है .
सूर्य हार, सूर्य की किरणों की डिज़ाइन से लैस होता है व महिलाओं के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है.
कोल्हापुरी साज, महाराष्ट्रियन महिलाओं के लिए अत्यंत माहत्वपूर्ण है . मराठी महिलायें इसे मंगलसूत्र के रुप में इस्तेमाल करती हैं.यह जव मणि व विभिन्न पत्तियों की डिज़ाइन से लैस होता है जिनमें खूबसूरत नक्काशी की जाती है जो इसके सौंदर्य को और अधिक बढ़ाता है. इसके आलावा कोल्हापुरी साज में एक छोटा पेंडेंट होता है जिसमें माणिक रत्न जड़ा होता है.
कोल्हापुरी साज में विभिन्न पेंडेंट्स को सम्मिलित किया जाता है. इनमें 21 पेंडेंट्स भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाते हैं , 8 पेंडेंट्स अष्ट्मंगल ,02 पेंडेंट्स माणिक और पन्ना रत्न और आखिरी पेंडेंट् ताबीज का होता है जिसे डोरला कहते हैं . मान्यता है कि इसे घारण करने से घारणकर्ता की नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा होती है. इसके मध्य में माणिक रत्न जड़ा जाता है . हार में मसा ( मछली) , कमल, करले, चन्द्र , बेलपान , शंख , नाग, कसम और भुंगा, बाघनख , ताबीज , लाल और हरा पनाड़ी, कीर्ति मुख , एक दूसरे के विपरीत स्थापित होते हैं.
चंपाकली हार , गजरे की भाँति दिखने वाला ये हार पुष्पों की आकृति से प्रेरित होकर तैयार किया जाता है.
पुतली हार , पारंपरिक कोल्हापुरी माले को कहते हैं जिसमें लक्ष्मी अथवा राम सीता की आकृति को जटिल नक्काशी द्वारा उकेरा जाता है .
चंदन हार, तीन से चार सोने की चेन को मिलाकर चंदन हार तैयार किया जाता है.
कान बालियाँ, मोती से बनी अदभुत बालियों को कहते हैं .इनका महाराष्ट्रियन आभूषणों में विशेष स्थान है . कुड़्या बालियाँ मोतियों के गुच्छे की तरह लगती है और स्त्री सौंदर्य को नया आयाम देती हैं. भिक बालियों को पुरुष धारण करते हैं.
Jewels of Tamil Nadu | by Swapnil Shukla
ज्वेलस ऑफ तमिल नाडु
भारतीय आभूषणों का इतिहास कुछ 5000 वर्ष प्राचीन है. सौंदर्य के प्रति लोगों के आकर्षण ने आभूषणों की महत्ता को जन्म दिया . भारतीय आभूषणों की अद्वितीय व बेहतरीन डिज़ाइन्स की अपनी ही अदा है. भारतीय शास्त्रीय नृत्य जैसे भरतनाट्यम , कुचिपुड़ी , मोहिनीअट्टम आदि नृत्य शैलियों में भी आभूषणों को बहुत महत्व दिया जाता है. राजा महाराजाओं के काल से ही भारतीय आभूषण न सिर्फ इंसानों के लिए बल्कि विशेष पर्वों पर देवी देवताओं व पशुओं जैसे हाथी ,घोड़े आदि के लिए भी तैयार किए जाते हैं.
आभूषणों की भिन्नता किसी राज्य विशेष की भौगोलिक संरचना , लोग , सभ्यता, परंपरा व जीवन शैली आदि के आधार पर हो सकती है. उदाहरण के लिए तमिल नाडु व केरल के आभूषण शुद्ध सोने से तैयार किए जाते हैं जिनकी डिज़ाइन्स प्रकृति से प्ररित होती हैं . कुंदन व मीनाकारी से लैस आभूषण मुगल काल से प्रचलित हुए. राजस्थान ,गुजरात , मध्य प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में चाँदी के बीड्स से लैस आभूषण अधिक प्रचलन में हैं.
असम के आभूषणों की डिज़ाइन्स पुष्पों से प्रेरित होती हैं. मणिपुर के ज्वेलरी मेकर्स सींप, पशुओं के पँजों, दाँतों व कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते हैं .भारतीय स्वर्ण , चाँदी व हीरे आदिके आभूषण कीचमक पूरे विश्व में फैली है.
यदि हम तमिल नाडु के आभूषणों की विशेषता की बात करें तो यहाँ के आभूषण अपने अतुल्नीय सौंदर्य के कारण दुनियाभर में प्रख्यात हैं. तमिल लोगों पर स्वर्णाभूषणों की चाहत देखते ही बनती है. प्राचीन तमिल साहित्य में महिलाओं द्वारा धारण करने वाले सिर से पाँव तक के आभूषणों का जिक्र किया गया है. तमिल नाडु की प्राचीन मूर्तियों द्वारा भी हमें यहाँ के गहनों की विशिष्ट्ता के बारे में जानकारी प्राप्त होती है.
तमिल परंपराओं के अनुसार , यहाँ के लोग हिंदू देवी- देवताओं को स्वर्णाभूषणों से अलंकृत करते हैं और इनकी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करने से पूर्व दर्पण के समक्ष प्रस्तुत करते हैं. ये आभूषण विभिन्न प्रकार के रत्नों, उपरत्नों , हीरों आदि से लैस होते हैं.
तमिल लोग सिर व माथे के आभूषणों में क्रीडम जो कि स्वर्ण के मुकुट को कहते हैं जो रत्नों से जड़ा हुआ होता हैऔर मुख्यत: देवी- देवताओं व राजाओं को पहनाया जाता है . माथे को अलंकृत करने हेतु सूर्य व चंद्र पिराई को धारण किया जाता है. पट्ट्म को वर वधु माथे पर धारण करते हैं. कुंजम महिलाओं द्वारा धारण किया जाता है.
कानों के आभूषणों की यदि बात करें तो इसमें मुख्यत: थोडू, कडुक्कन, ओलई , पंपडम, मात्तल , कुंडलम, जिमिक्की , कडिप्पु, पोड़ी आदि प्रचलित हैं.
गले के हार के अंतर्गत मालई या चरम , जिसे शुद्ध सोने, मोती एवं मूँगे द्वारा तैयार किया जाता है. कासू मालई , सोने की लंबी चेन को कहते हैं जो स्वर्ण के सिक्कों द्वारा बनाई जाती है. माँगा मालई , एक प्रकार की लंबी चेन होती है जो आम के आकृति से प्रेरित होकर बनाई जाती है जिसमें बेशकीमती पत्थर व रत्न जड़े होते हैं. कोड़ी मालई , पत्तियों की डिज़ाइन से प्रेरित चेन होती है जो स्वर्ण से तैयार की जाती है. गले के श्रृंगार के लिए संगिलि व चावड़ी भी तमिल महिलाओं के बीच अत्यधिक प्रचलित हैं.
हस्त आभूषणों के अंतर्गत कप्पू, नेली, वंगी, नागोथू ( नाग के आकार का बाजू बंध ), कंगनम , थोलवलई कप्पू ( साड़ी पर पकड़ के लिए कँधे पर धारण करने वाला एक आभूषण ), नागर या नागम ( कोबरा के आकार का आभूषण ) आदि प्रचलित हैं.
कमर के आभूषणों में ओड़ीयनम , अरनाल, अरईजन्न कोड़ी, अरसला आदि सम्मिलित हैं. पाँव के आभूषणों के अंतर्गत सिलंबू , सलंगई , मेटटी , कोलुसु , पदक्कम आदि शामिल हैं. संगम सहित्य में तमिल के आभूषणों की विधिवत जानकारी प्रदान की गई है. निसंदेह ये आभूषण यहाँ के लोगों के लालित्य में चार चाँद लगाते हैं और धारणकर्ता के व्यक्तित्व व सौंदर्य को एक नया आयाम प्रदान करते हैं.
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
ज्वेलरी डिज़ाइनर ( Jewellery Designer )
फ़ैशन कंसलटेंट ( Fashion Consultant )
About SWAPNIL SHUKLA ~
A Jewellery Designer, Fashion Consultant, Artist, Fashion Columnist and Author. Attended SDPW, New Delhi.
In the words of Swapnil , "All my designer products are very close to my heart because all of them are intricate yet striking, bold yet feminine. They truly represents the spirit of a woman "
" My greatest satisfaction is a happy client ", she added.
Nature, Art, Various Cultures, Religion inspired Swapnil in designing.
Swapnil says, " Jewellery is an expression of form, shape, function creatively with techniques old & new. With revere for the traditional techniques of jewellery making, my endeavour is to showcase a collection that is conformist to the technique & non-conformist in the way it is rendered.
Parallel to it is the collection that follows the modern techniques of jewellery making with coloured gemstones, pearls...left best to the imagination!!!
Swapnil has worn several hats , Jewellery Designer, Fashion Consultant, Craft Expert, Writer and Painter. More recently she diversified into Handicraft Products as an experiment in her journey in design .
Every experiment in her life she avers has been … “a step in my journey of growth and self discovery, a kaleidoscopic part of life that enriches the fabric of my work and existence.”
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